उत्तराखंड…भाजपा : दस का नहीं आठ का टिकट कटा है जनाब, 70 प्लस वालों की विदाई भी नहीं कर सका हाईकमान, देख लें
देहरादून। भाजपा ने आज दोपहर टिकटों का ऐलान करते हुए दावा किया था दस विधायकों की छुट्टी कर दी गई है, लेकिन सच्चाई इससे इतर है। दरअसल भाजपा के नीति निर्धारकों ने मतदाताओं से यह बात बड़ी ही चतुराई से छिपा ली कि उसने दस में से दो विधायकों को टिकट न देकर उनके के परिवार के लोगों को टिकट दिया है। इससे साफ हो गया है भाजपा ने पहली लिस्ट में दस नहीं बल्कि आठ निर्वतमान विधायकों के टिकट काटे हैं।
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ऐसे ही पहले विधायक हैं खानपुर के कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन। उनकी हरकतों से परेशान भाजपा ने उन्हें टिकट न देकर यह जताने का प्रयास किया है कि भाजपा अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं करती है लेकिन चुपके से उनकी पत्नी देवयानी कुंवर को टिकट देकर चैंपियन को भी नाराज होने से बचा लिया। अब इसे टिकट काटा जाना कहा जाएगा या नहीं यहा आप ही तय कर लें।
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इसी तरह काशीपुर सीट से निवर्तमान विधायक हरभजन सिंह चीमा ने अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कुछ माह पूर्व ही चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया था। उन्होंने अपने बेटे त्रिलोक सिंह चीमा को भी मीडिया के सामने पेश करके हाईकमान से अनुरोध किया था कि उनके स्थान पर उनके बेटे को टिकट दिया जाए। अब अगर भाजपा के नेता यह दावा करें कि हरभजन सिंह चीमा का उन्होंने टिकट काटा है तो जनता समझती है कि यह वंशवाद की परंपरा की ही एक कड़ी है।
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देहरादून की कैंट विधानसभा सीट से हरवंश कपूर की निधन के बाद उनकी पत्नी सविता कपूर को टिकट दिया गया है। इसे भी टिकट काटना तो नहीं कहा जा सकता है। इन तीनों सीटों पर वंशवाद की बू कांग्रेस को ही नहीं बल्कि भाजपा के कार्यकर्ताओं को भी महसूस हो रही है। यह वही वंशवाद है जिसका विरोध करके भाजपा ने सड़क से केंद्र की सत्ता तक का सफर तय किया है।
एक ओर पूर्व सीएम भुवन चंद खंडूड़ी की पुत्री ऋतु खंडूड़ी का टिकट काटा गया है, इससे साफ हो गया है कि उत्तराखंड में भुचन चंद्र खंडूड़ी का नाम अब भाजपा के लिए बीते समय की बात हो गई है। भाजपा की अग्रिम पंक्ति की राजनीति से खंडूड़ी परिवार की विदाई हो गई है।
भाजपा के टिकट वितरण में आयु के मामले में 70 प्लस के लोगों को सॉरी बोलने का फार्मूला भी उत्तराखंड में काम नहीं कर सका। यहां 72 वर्षीय दो नेताओं को टिकट दिया गया है। पहले हैं दोनों ही भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हें और दोनों ही वर्तमान में धामी मंत्रीमंडल के कद्दावर नेता रह चके हैं। वंशीधर भगत और बिशन सिंह चुफाल। विकीपिडिया बताता है कि दोनो की ही पैदाईश वर्ष 1950 है। इस नाते दोनों ही 72 वर्षीय हैं। और दोनों के ही टिकट काटने की हिम्मत हाईकमान नहीं दिखा सका।
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हालांकि पौड़ी से मुकेश कोली की विदाई पहले से तय मानी जा रही थी। उनके स्थान पर राजकुमार पोरी को लाकर भाजपा ने बड़ा दांव खेला है। कर्णप्रयाग में सुरेन्द्र सिंह नेगी अस्वस्थ हैं, उनके स्थान पर अनिल नौटियाल पर दांव खेल कर भाजपा ने सीट अपने पाले में रखने का इंतजाम किया है।थराली में मुन्नी देवी से भाजपा ने पल्ला झाड़ लिया है। वैसे वह जीत राम का मुकाबला कर पाने में सक्षम नहीं थी। अब हो सकता है, भुपाल राम टम्टा मुकाबले को रोचक बना सकते हैं।
अल्मोड़ा में डिप्टी स्पीकर रघुनाथ का जाना तय माना जा रहा था। उनके बदले कैलाश शर्मा को टिकट दिया है। द्वाराहाट में बदलाव जरूरी था वरना नेगी का पाप भाजपा ढो नहीं पाती। पाँच साल झेलना काफी परेशानी भारी रहा है। गगोलीहाट में मीना का बदला जाना भी तय था। उस पर किसी को ताजुब्ब नहीं हुआ है। फकीर राम शायद बेहतर कर सकते हैं। देहरादून जिले में अब केवल त्रिवेन्द्र की सीट फाइनल होनी बाकी है।
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