धिक्कार है @ हल्द्वानी : आपात सेवा को फोन नहीं मिला, धरती के भगवान आए नहीं, पुलिस कहती रही 108 बुलाओ… और जमीन पर पड़ा जीवन मर गया
हल्द्वानी। सरकार प्रदेश के कोने—कोने में लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं व आपात सेवाएं देने के दावे कर रही है लेकिन यहां बीच शहर में सरेआम जो कुछ हुआ उससे सरकार के तमाम दावे हवा बन कर उड़ गए। दिवंगत समाजसेवी गुरविंदर चड्डा अभी आपके जेहन से उतरे नहीं होंगे। उनकी मंगलपड़ाव पर दुकान है। अब बेटे गगनदीप सिंह चलाते हैं। उनकी दुकान पर आज खरीददारी करने आए हल्दूचौड़ के 40 वर्षीय शख्स जीवन पांडे पहुंचे थे। गगन दूसरसे खरीददारों के साथ व्यस्त थे और जीवन अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे अचानक उनकी छाती में दर्द उभरा और देखते ही देखते वे दुकान के फर्श पर लुढ़क गए। वे बार बार छाती की तरफ हाथ् लगा रहे थे, इससे समझने में देरी नहीं लगी कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है।
एक जागरूक नागरिक का दायित्व निभाते हुए गगन दीप सिंह चड्ढा और वहां खड़े कई लेागों ने तुरंत जीवन को आपात चिकित्सा देने के लिए सरकार की आपात सेवा 108 पर काल की। तकरीबन आधा घंटे तक फोन करते रहने के बावजूद आपात सेवा का नंबर नहीं मिला। इसी बीच आसपास के निजी चिकित्सकों को लेने के लिए भी कुछ लोग दौड़े, लेकिन सबने आपात सेवा के उपयोग की सलाह ही दी। एक भी चिकित्सक दुकान के फर्श पर पड़े जीवन पांडे को देखने तक नहीं पहुंचा।
गगनदीप बताते हैं, इधर पांडे की हालत लगातार बिगड़ रही थी उधर कोई भी उन्हें चिकित्सालय ले जाने की व्यवस्था नहीं कर पा रहा था। इसबीच कुछ लोगों ने चंद कदमों पर स्थित पुलिस चौकी फोन किया वहां से भी 108 एंबुलैंस के बुलाने की सलाह दी गई।कुछ लोग दौड़ कर पुलिस चौकी पहुंचे और चौकी प्रभारी के सामने पूरी घटना कह सुनाई इस पर उन्होंने जैसे तैसे करके एक एंबुलैंस भेजी।
जिसमें जीवन पांडे को चिकित्सालय पहुंचाया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जीवन पांडे के जीवन का चिराग बुझ चुका था। बाद में उनके शव को परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया।
यह घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई। जीवन की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई या फिर हमारी असंवेदनशीलता और व्यवस्था की जड़ता उसकी हत्यारी है। सोचिए दूर दराज के गांवों में हमारी स्वास्थ्य सेवाओं के हाल क्या होंगे जब हल्द्वानी जैसे शहर के बीचों बीच दम तोड़ रहे जीवन को बचाने के लिए एक अदद एंबुलैंस तक नहीं मिल सकी।