हल्द्वानी : वर्कर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय आह्वान पर आशा यूनियन ने मनाया “मांग दिवस”

हल्द्वानी। कोरोना काल में आशाओं समेत सभी फ्रंटलाइन स्कीम वर्कर्स की स्वास्थ्य सुरक्षा, कोरोना भत्ता व बीमा किये जाने की मांगों को लेकर स्कीम वर्कर्स के राष्ट्रीय फेडरेशन “ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन” के आह्वान के तहत आज 31 मई 2021 को पूरे देश भर में स्कीम वर्कर्स की माँगों को लेकर कोरोना गाइडलाइंस का पालन करते हुए “मांग दिवस” मनाया जा रहा है। इसके समर्थन में ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन ने हल्द्वानी में महिला अस्पताल परिसर एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व अपने अपने घरों से अपनी मांगों को लेकर कोरोना नियमों का पालन करते हुए माँगों को लिखी हुई तख्तियों के साथ प्रदर्शन किया।

हल्द्वानी में उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के प्रदेश महामंत्री डॉ. कैलाश पाण्डेय के नेतृत्व में प्रदर्शन किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि, “आमतौर पर देखा गया है कि हर स्वास्थ्य संकट के समय आशाओं समेत सभी स्कीम वर्कर्स को काम में झौंक दिया जाता है लेकिन उनके वेतन भत्ते और स्वास्थ्य संबंधी सुरक्षा को दरकिनार कर दिया जाता है। यह बहुत ही खेदजनक है। कोरोना ड्यूटी में फ्रंटलाइन वर्कर्स होने के बावजूद आशा वर्कर्स को अधिकांशतः पीपीई किट तो छोड़ दीजिए न्यूनतम जरूरी मास्क, ग्लब्ज और सेनेटाइजर तक उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं। यह उन्हें स्वयं खरीदने पड़ रहे हैं। और यह सब तब हो रहा है जबकि सरकार इन स्कीम वर्कर्स को फ्रंटलाइन वर्कर तो मानती है लेकिन न्यूनतम वेतन नहीं देती है न ही कोई कोरोना भत्ता। यानी अपनी सुरक्षा की खुद गारंटी लेते हुए स्कीम वर्कर्स को कोविड ड्यूटी के काम की जिम्मेदारी दो और संक्रमण होने पर पल्ला झाड़ लो।

डॉ. कैलाश ने कहा कि, “आशाओं को कोरोना की दूसरी लहर आने पर पुनः ड्यूटी सौंपते हुए बिना सुरक्षा और कोरोना भत्ते के फ्रंट लाइन वर्कर के कार्य में झौंक देना उनके स्वास्थ्य और परिवार के साथ खिलवाड़ है। ‘संकट में दिया जाता है सबसे पहले काम, पर क्यों नहीं सुरक्षा और काम का दाम’ यह नहीं चलने दिया जा सकता है।”

उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की नगर अध्यक्ष रिंकी जोशी ने कहा कि, “यह बेहद आश्चर्यजनक और शर्मनाक है कि सरकार स्वयं महिला स्कीम वर्कर्स की शोषक बनी हुई है। सरकार का काम तो किसी भी किस्म के शोषण-उत्पीड़न का खात्मा होना चाहिये लेकिन आशा समेत तमाम महिला स्कीम वर्कर्स के मामले में ठीक उल्टा हो रहा है। आशाओं को सुरक्षा, स्वास्थ्य, मानदेय और सम्मान देते हुए काम लिया जाना चाहिए तभी सरकार अपने आप को जनकल्याणकारी कहने का नैतिक अधिकार है। अन्यथा महिला श्रम के शोषण पर आधारित सरकार को बने रहने का कोई हक नहीं है।”

“मांग दिवस” पर डॉ. कैलाश पाण्डेय, रिंकी जोशी के अतिरिक्त रीना बाला,सरोज रावत, प्रीति रावत, माया टंडन, चन्द्रकला अधिकारी, आशा जिसहि, गीता जोशी, कमला आर्य, रेशमा, गंगा आर्य, कमला बिष्ट, माया तिवारी, तबस्सुम जहाँ, नसीमा, गीता देवी, दीपा बिष्ट, गीता पांडे, रश्मि जोशी, स्वाति, भगवती पाण्डे, पूनम बोरा, दीपा बहुगुणा, मीना मिश्रा, मीनू, बृजेश कटियार, शाइस्ता, पुष्पलता, मंजू रावत, सीमा आर्य, यसोदा बोरा आदि मौजूद रहे। घरों पर प्रदर्शन कर समर्थन करने वालों में भाकपा (माले) राज्य सचिव राजा बहुगुणा आदि शामिल रहे।

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‘मांग दिवस’ पर पांच सूत्रीय मांगों का ज्ञापन राज्य के मुख्यमंत्री को ईमेल के माध्यम से भेजा गया जिसमें मांग की गई कि-
1- आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स को दस हजार रुपये मासिक कोरोना भत्ता दिया जाय।
2- कोरोना काल में बिना किसी शर्त पचास लाख रुपए जीवन बीमा योजना को आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स पर लागू किया जाय।
3- आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स को दस लाख रुपए स्वास्थ्य बीमा की गारंटी की जाय।
4- कोरोना ड्यूटी के दौरान आशा संकेत सभी स्कीम वर्कर्स को सुरक्षा उपकरण हर हाल में मुहैया कराए जाय।
5- आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स के परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता के आधार पर कोविड वैक्सीन लगायी जाय।

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