देहरादून… आप तो ऐसे न थे : धामी ने अपना चेहरा चमकाने पर ही खर्च कर दिए लगभग 80 करोड़ रूपये, यह तो आधी जानकारी है…
देहरादून। जिन को हम अपना प्रतिनिधि चुनकर यह सोचते हुए विधानसभा(Assembly) या लोकसभा (Parliament)में भेजते हैं कि वे गरीबों और आम जनता के हित में कार्य करेंगे। जनता से कर वसूली के रूप एकत्रित किए गए धन को जनता की सुविधा देने में खर्च करेंगे। वे ही चुनाव जीतते ही जनता के प्रतिनिधि न होकर राजनैतिक दल के प्रतिनिधि बन जाते हैं। जनता का धन उनका राजैनतिक दल की बपौती बन जाता है। जिसे वे जब चाहे और जैसे चाहे खर्च करते हैं। ऐसा ही एक नया मामला खुला है उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से।
तकरीबन छह माह पूर्व जब पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami)को भाजपा हाईकमान ने विधायक दल की आड़ लेकर मुख्यमंत्री बनाया था तब प्रदेश की जनता सोच रही थी कि अब प्रदेश को संभवत: एक ऐसा युवा मुख्यमंत्री मिल गया है जो उसकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा। धामी दौड़े भागे भी खूब। और वह दौड़ भाग अखबारों, टीवी चैनलों, डिजिटल मीडिया और चौक चौराहों और सड़कों के किनारे हार्डिंग्स – बोर्डों के माध्यम से प्रमुखता से दिखने लगी तो लोगों को लगा कि उनके सपने सच होने का वक्त आ गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े प्रदेश पर मुख्यमंत्री की यह तमाम कार्रवाई कितनी महंगी पड़ी।
आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि अपने प्यारे सीएम साहब ने पूरे अस्सी करोड़ रूपये अपना चेहरा चमकाने में ही खर्च कर डाले हैैं। यह तो अभी प्रिंट या और होर्डिंग्स और बोर्डों का खर्च ही सामने आया है। इलैक्ट्रानिक्स मीडिया और डिजिटल मीडिया पर किया गया खर्च तो हमारी सरकार ने छिपा कर ही रखा है।
दरअसल देहरादून निवासी जेम्स रेशन में सूचना एवं लोक संपर्क विभाग से आरटीआई के तहत यह जानकरी मांगी थी कि मुख्यमंत्री बनने के बाद मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री(PM Modi) के विज्ञापनों में सूचना विभाग ने कितना खर्च किया। हालांकि उन्होंने इलेक्ट्रानिक मीडिया और डिजिटल मीडिया का ब्यौरा भी मांगा था लेकिन सूचना विभाग ने उन्हें फिलहाल प्रिंट मीडिया ओर होर्डिग्स और बोर्ड लगाने पर हुए खर्च की जानकारी ही उपलब्ध कराई है। हालांकि यह जानकारी अधूरी है लेकिन है हैरान कर देने वाली।
मुख्यमंत्री बनने के बाद सूचना विभाग ने मुख्यमंत्री का चेहरा चमकाने के लिए केवल प्रिंट मीडिया में ही 60 करोड़, 98 लाख 56 हजार 449 रूपये खर्च कर डाले। इसके अलावा होर्डिंग्स और बोर्डों पर 18 करोड़ 58 लाख रुपये खर्च किए गए हैं। जिसमे अभी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और वेब पोर्टल पर विज्ञापन के नाम पर किए गए खर्च की जानकारी नहीं है।
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यह आंकड़े उस प्रदेश के हैं जहां के सरकारी कर्मचारियों को भी समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा हैं। जहां की योजनाएं बजट के अभाव में फाइलों में ही दम तोड़ रही हैं। वहां का सीएम अपना चेहरा चमकाने के लिए यदि लगभग 80 करोड़ रूपये फूंकने लगे तो समझ लीजिए कि हमारे जनप्रतिनिधि दरअसल आम जनता के सेवक नहीं बल्कि अपनी राजनैतिक पार्टी अैर अपनी महत्वाकांक्षाओं के सेवक हैं। वे तो सिर्फ हमारे वोट हासिल करने के लिए अपनी महत्वाकांक्षा को पर्दे से ढक कर रखते हैं। पद मिलने के बाद ही उनका असली चेहरा सामने आ पाता है।