सत्यमेव जयते विशेष : क्या आप जानते हैं ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती की रचना किसने की और उनका आज के दिन से क्या संबंध है… अवश्य पढ़ें यह ज्ञानवर्धक जानकारी

तेजपाल नेगी
भारत में रहने वाला ऐसा कौन होगा जिसने घरों मंदिरों में गायी जाने वाली आरती ओम जय जगदीश हरे को न सुना हो। अधिकांश को तो यह आरती कंठस्थ होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह आरती वेदों से नहीं ली गई है। न ही इसके जन्म का काल खंड बहुत पुराना है। आज हम आपको बताते हैं कि ‘ओम जय जगदीश हरे’ की रचना किसी योगी तपस्वी ने नहीं बल्कि हम जैसे सांसारिक व्यक्ति ने की थी उनका नाम था पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी। और वे बहुत पुराने योगी तपस्वी नहीं थे बल्कि अंग्रेजों से भारत माता की स्वतंतत्रा की जंग लड़ने वाले एक स्वतंत्रता संग्राम सैनानी थे। जरा गौर करें आरती की श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा’ पंक्ति पर गौर करें यहां श्रद्धा शब्द जहां धार्मिक श्रद्धा बढ़ाने को कहता है, वहीं ये संभवतः इसके रचयिता की तरफ भी इशारा करता है।
फिल्लौरी का हिंदी साहित्य में भी अहम योगदान रहा है। कुछ विद्वान 1888 में आए उनके उपन्यास ‘भाग्यवती’ को हिंदी का पहला उपन्यास मानते हैं।


फिल्लौरी के शहर और आसपास के अधिकतर लोग उनके नाम से परिचित हैं। शहर के बस अड्डे पर उनकी मूर्ति लगाई गई है। दरअसल यहां के लोगों में भी कुछ साल पहले ही उन्हें लेकर जागरुकता बढ़ी है।
उनके नाम से फिल्लौर में श्रद्धा राम ट्रस्ट भी चलता है। इस ट्रस्ट के प्रयास से ही नगर नगर परिषद ने उनकी एक मूर्ति स्ािापित कराई। लगभग 20 साल तक ये मूर्ति नगर परिषद के दफ्तर में पड़ी रही। फिर साल 1995 में बेअंत सिंह सरकार ने इसे बाहर निकाला और इसे लगाया गया.”
हर साल उनके जन्म दिवस पर यहां एक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें श्रद्धा राम को श्रद्धांजलि दी जाती है और उनके बारे में जानकारी साझा की जाती है। यहां के लोग श्रद्धा राम को ‘पंडित जी’ कह कर याद करते हैं। वे बताते हैं कि श्रद्धा राम ने अपने ज़माने में भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराईयों के खिलाफ अभियान चलाया था। शर्मा कहते हैं कि अब उनके बारे में जानकारी बढ़ने लगी है और कुछ लोग उन पर अध्ययन भी करना चाहते हैं।

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श्रद्धा राम फिल्लौरी का जन्म 30 सितंबर को 1837 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके शहर के लोग बताते हैं कि जब वे महाभारत की कथा सुनाते थे तो सुनने के लिए काफी लोग जुटा करते थे। उन पर 1865 में ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ प्रचार करने के आरोप लगे और उन्हें शहर से निकाल दिया गया था। उन्होंने कुछ समय तक शहर से बाहर जा कर काम किया और फिर वापस अपने घर आ गए। 43 वर्ष की उम्र में आज के ही दिन यानी 24 जून को उनका देहांत हो गया।
तो आज के बाद जब भी अपने घर — मंदिर में ओम जय जगदीश हरे आरती गायें तो समस्त देवी देवताओं का स्मरण करते हुए पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी का भी पुण्य स्मरण अवश्य करें जिनके शब्दों में आप भगवान का इतना मीठा स्मरण करते हैं।

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