नव संवत्सर : आज के दिन पितामह ब्रह्मा ने किया था सृष्टि का निर्माण आरंभ, शुरू हो गई शक्ति पूजा

राजगढ़।चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नव संवत्सर (नया वर्ष) का आरम्भ होता है, यह अत्यंत पवित्र तिथि है। इसी तिथि से पितामह ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण प्रारंभ किया था। युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारम्भ भी इसी तिथि को हुआ था।भारत की गौरवमयी संस्कृति मे संवत्सर का विशेष महत्व है यहा हिंदू धर्म मे किये जाने वाले सभी संस्कारों में संवत्सर का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है किसी भी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान व कार्य मे संवत्सर का प्रयोग मुख्य संकल्प मे किया जाता है। जहां अंग्रेजी वर्ष का शुभारम्भ जनवरी मास से होता है। वही हिंन्दी नववर्ष का शुभारंभ चैत्र मास से होता है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथी से संवत्सर का शुभारंभ होता है। संवत्सर के शुभारंभ पर किसी ब्राह्मण से या स्वयं पंचोपचार पूजन करना चाहिए जिसमे पंचदेवों का पूजन के साथ औम ब्राह्मणये नमः, औम बहु रूपाये नमः, विष्णवे नमः ,औम संवत्सराये नमः ,चैत्र मासाये नमः, बंसताये नमः व स्वस्ति वाचन करना चाहिये उसके बाद आकाशीय मंत्री मंडल के बारे मे जान कर नये मत्री मंडल को प्रमाण करना चाहिये क्युकि आकाश मे इस दिन हर साल नये मंत्री मंडल का गठन होता है।

इस महत्व को मानकर भारत के महामहिम सार्वभौम सम्राट विक्रमादित्य ने भी अपने संवत्सर का आरम्भ (आज से प्रायः ढाई हजार वर्ष पहले) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही किया था। इसमें सन्देह नहीं है कि विश्व के यावन्मात्र संवत्सरों में शालिवाहन शक और विक्रम संवत्सर -ये दोनों सर्वोत्कृष्ट हैं, परन्तु शक का विशेषकर गणित में प्रयोजन होता है और विक्रम-संवत् का इस देश में गणित, फलित, लोक-व्यवहार और धर्मानुष्ठानों के समय ज्ञान आदि में अमिट रूप से उपयोग और आदर किया जाता है।
ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि का आरम्भ किया, उस समय इसको सर्वोत्तम तिथि सूचित किया था और वास्तव में यह सबसे उत्तम तिथि है ।

इसमें धार्मिक, सामाजिक, व्यावहारिक और राजनीतिक आदि अधिक महत्व के अनेक काम आरंभ किए जाते हैं। इसमें संवत्सर का पूजन, नवरात्र घट-स्थापन, ध्वजारोपण, तैलाभ्यंग- स्नान, वर्षेशादि का फल पाठ आदि लोकप्रसिद्ध और विश्वोपकारक साबित होता है ।

इस बार यानि 2024 में नव संवत्सर की शुरूआत 9 अप्रेल मंगलवार से हो रही है इस लिए इस संवत्सर का राजा मंगल व मंत्री शनिदेव होंगे इस संवत्सर का नाम पिंगल होगा देवठी मझगांव के पंडित कृष्ण कांत शर्मा के अनुसार इस बार ग्रह मंडल में सस्येश मंगल , धान्येश चंद्र,रसेश गुरू, नीरसेश मंगल,मेघेष शनि,फ्लेश शुक्र,धनेश मंगल,व दूर्गेश भी शनि महाराज होंगे सात स्थानों पर क्रुर ग्रहो का अधिकार होगा और तीन स्थानों पर सौम्य ग्रहो का अधिकार होगा राजा सहित कुल चार अकेले मंगल के अधीन होंगे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल व शनि दोनों बहुत प्रचंड ग्रह माने जाते हैं ।

ज्योतिष एवं वैदिक पंचाग जिसके आधार पर हिंदू धर्म में काल गणना होती है के अनुसार साल में कुल 4 नवरात्रों का पर्व पड़ता हैं। जिसमें से दो गुप्त नवरात्रे होते हैं । दो नवरात्रे शारदीय अश्विन मास में और चैत्र नवरात्रे चैत्र मास में पड़ते हैं। गुप्त नवरात्रि को तंत्र साधना के लिए शुभ माना जाता है। वहीं चैत्र और शारदीय नवरात्रि गृहस्थ लोग मनाते हैं। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रे आरंभ होती है। देशभर में नवरात्रे का बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा करने का विधान है।

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हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल 2024 को रात्रि 11 बजकर 50 मिनट से शुरू हो रही है जो 9 अप्रैल को रात 8 बजकर 30 मिनट पर समाप्त हो रही है। इसलिए चैत्र नवरात्रे 9 अप्रैल 2024 से आरंभ हो रहे है । जो 18 अप्रैल को समाप्त हो रहे है ।

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शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि और मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।नवरात्रे के दौरान मां भगवती और उनके नौ स्वरूपों की पूजा करने का विधान है। मां की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने से साधक को हर एक कष्ट से निजात मिल जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही हमेशा घर में खुशहाली बनी रहती है ।इस बार चैत्र नवरात्रे में मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आने वाली है।

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बता दें कि मां के वाहन का चुनाव दिन के हिसाब से किया जाता है। इस साल चैत्र नवरात्रे मंगलवार को शुरू हो रहे है। इसलिए मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही है। घोड़े में सवार होने का मतलब है कि सत्ता में परिवर्तन। इसके साथ ही साधकों के जीवन में आने वाले हर कष्टों से निजात मिलेगी। नवरात्रों में लोग पूरी तरह सात्विक जीवन जीते है जैसे मांस मंदिरा का प्रयोग नही करते , सात्विक आहार , कुछ लोग तो लहसुन प्याज का भी प्रयोग भोजन में नही करते बाल व नाखुन काटना भी नवरात्रों में शुभ नही माना जाता । इन दिनो चारो तरफ भजन कीर्तन, देवी भागवत, चंडी पाठ, जागरण व भंडारों का आयोजन होता रहता है ।

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