राजनीतिक गलियारे से…#हल्द्वानी: कुनबा बढ़ाना आसान,संभालना मुश्किल, भाजपा-कांग्रेस में उठने लगी हैं विरोध की चिंगारियां
हल्द्वानी। उत्तराखंड में चुनाव का समय नजदीक आते ही राजनीतिक पार्टियों में अपना कुनबा बढ़ाने की होड़ लगी हुई है। खासकर कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियां इन दिनों अपना कुनबा बढ़ाने में मशगूल हैं। कुनबा बढ़ाना आसान तो है।
लेकिन, उस कुनबे को थाम पाना बड़ी टेड़ी खीर है। भाजपा ने दो निर्दलीय विधायक राम सिंह कैड़ा और प्रीतम पंवार और एक विधायक राजकुमार को कांग्रेस से हाईजेक कर अपना कुनबा बढ़ाया है। यानी अब तक तीन विधायक भाजपा के पाले में आ चुके हैं।
जो टिकट देने के आश्वासन पर ही आए होंगे। उधर, कांग्रेस ने पलटवार करते हुए भाजपा के वरिष्ठ मंत्री यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव आर्या को अपने पाले में खींच लिया है। नेता भी अपना व्यक्तिगत विकास के लिए राजनीतिक शतरंजी मोहरें बिछाने लगे हैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा से कांग्रेस में 8 विधायक जाने की जुगत में हैं। बहरहाल, उनकी सेटिंग ठंग से नहीं बैठ पायी है। अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए भले ही ये इधर से उधर छलांग मारते रहें। लेकिन, इसका आने वाले समय में सबसे ज्यादा नुकसान आमजन का होगा।
क्योंकि जो नेता पांच साल से दिल में तमन्ना लिए टिकट के सपने पाल रहा था। यदि उसके स्थान पर दूसरी पार्टी से लाकर किसी अन्य नेता को टिकट दें तो उसके आंखों के सामने अंधेरा होने जैसी स्थिति तो होगी ही होगी। पार्टी के अंदर अतर्कलह का घमासान मचेगा। चाहे सरकार किसी की भी बने। लेकिन, भीतरी-बाहरी का मुद्दा तो उछलेगा ही। नैनीताल सीट से सरिता आर्या ने मीडिया के सामने अपना दर्द और तेवर दोनों बयां कर दिए हैं। भीमताल में भाजपा कार्यकर्ताओं ने साफ कह दिया है। राम सिंह कैड़ा के पीछे हम कतई शामिल नहीं हो सकते हैं।
भाजपा के वर्तमान कार्यकाल में जिस तरह से पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बने। इससे प्रदेश का आर्थिक नुकसान हुआ है। दो मुख्यमंत्रियों के होल्डिंग बदले गए और तीसरे के लगाए गए। इसका सीधा असर प्रदेश की जनता पर पड़ा। जनता के पैसे ही तो नेता ऐस कर रहे हैं। कुनबा बढ़ाना आसान तो है, मगर संभालना मुश्किल।
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