नैनीताल…सरकार को झटका: विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में कर्मचारियों की बर्खास्तगी पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक

नैनीताल। उत्तराखंड विधानसभा में पूर्व में विधानसभा अध्यक्षों द्वारा नियुक्त कर्मचारियों को सेवा से निकाले जाने के सरकार के निर्णय पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। फिलहाल कर्मचारियों की नौकरी बनी रहेगी। बता दें, कि उत्तराखंड विधानसभा की अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने विधानसभा में बैकडोर से हुईं 250 भर्तियां रद्द कर दी थी। इनमें 228 तदर्थ और 22 उपनल के माध्यम से हुईं नियुक्तियां शामिल हैं।


हाईकोर्ट ने इस मामले में कोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से चार सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने के लिए कहा है। मामले की सुनवाई न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ में हुई। मामले में अगली सुनवाई के लिए 19 दिसंबर की तिथि नियत की गई है।


बर्खास्तगी के आदेश को बबीता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट एवं कुलदीप सिंह समेत अन्य ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवीदत्त कामत, वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत, रवींद्र सिंह बिष्ठ और आलोक मेहरा ने पैरवी की। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि विधानसभा अध्यक्ष की ओर से लोकहित को देखते हुए इन कर्मचारियों की सेवाएं 27, 28 और 29 सितंबर को समाप्त कर दी थीं।

इन कर्मचारियों को किस आधार पर और किस कारण से सेवा से हटाया गया, इस बात का बर्खास्तगी आदेश में कहीं उल्लेख नहीं किया गया। कार्रवाई से पहले इन कर्मचारियों का पक्ष भी नहीं सुना गया। जबकि इन कर्मचारियों से विस सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की तरह कार्य कराया गया।

दलील दी कि एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं है। बर्खास्तगी का यह आदेश विधि विरुद्ध है। विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच भी हुई हैं। जिनको नियमित किया जा चुका है। लेकिन सिर्फ संबंधित कर्मचारियों को ही बगैर आधार के बर्खास्त किया गया है।

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याचिका में कहा गया है कि 2014 तक तदर्थ रूप से नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित कर दिया गया। लेकिन इन कर्मचारियों को 6 वर्ष के बाद भी स्थायी नहीं किया। अब उन्हें सेवा से हटा दिया गया। पूर्व में भी उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी। जिसमें कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैध है।

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उसके बाद एक कमेटी के माध्यम से उनके सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की जांच हुई, जो वैध पाई गई। जबकि नियमानुसार छह माह की सेवा देने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था। कोर्ट में विधानसभा सचिववालय का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता विजय भट्ट ने कहा कि इन कर्मचारियों की नियुक्ति बैकडोर से हुई है। इन्हें व्यवस्था के आधार पर रखा गया था, और उसी आधार पर इन्हें सेवा से हटा दिया गया।


विधानसभा सचिवालय से निकाले गए 102 कर्मचारियों ने बर्खास्तगी के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। कर्मचारियों ने कहा है कि उन्हें बगैर उनका पक्ष जाने हटा दिया गया। इतनी संख्या में कार्मिकों को हटाया जाना लोकहित में नहीं है। जबकि पूर्व में कार्यरत कर्मचारियों को नियमित नियुक्ति भी दी गई है। कोर्ट ने कुल 102 कर्मचारियों की याचिकाओं पर सुनवाई की। जिसके बाद रोक का आदेश जारी किया गया।

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कोर्ट ने बर्खास्तगी के आदेश पर रोक लगाते हुए विधानसभा सचिवालय को निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि संबंधित कर्मचारी अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे। लिहाजा, विधानसभा सचिवालय चाहे तो नियमित नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। प्रकरण में अगली सुनवाई दो माह बाद होना तय हुआ है। इस दौरान कोर्ट ने प्रकरण में विधानसभा सचिवालय से चार सप्ताह के भीतर जवाब भी मांगा है।


विधानसभा में हुई भर्तियों पर कार्रवाई को लेकर विधानसभा सचिवालय को पहले ही अंदेशा था कि सेवा से हटाये गए कर्मचारी हाईकोर्ट जाएंगे। ऐसे में विधानसभा सचिवालय की ओर से हाईकोर्ट में मजबूत पैरवी के लिए बीती 20 सितंबर को ही अधिवक्ता की तैनाती कर दी गई थी। इसके बावजूद कर्मचारी हाईकोर्ट से अपनी बर्खास्तगी के आदेश पर रोक लगवाने में कामयाब हो गए। विधानसभा सचिवालय ने अधिवक्ता विजय भट्ट को विधानसभा की ओर से पैरवी के लिये अधिकृत किया है।

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