लालकुआं… #आरंभ है प्रचंड.2 : ये अगर चुनाव लड़े तो दुम्का को आखों के काजल का रखना होगा ख्याल
तेजपाल नेगी
हल्द्वानी। राजनैतिक परिस्थितियों पर आधारित हमारी विचार श्रृंखला की दो किश्तों में हमने बात की लालकुआं विधानसभा क्षेत्र के विधायक नवीन दुम्का को उनके ही घर यानी भारतीय जनता पार्टी के अंदर से से मिल रही चुनौतियों की। हमने आपको बताया कि इस विधानसभा सीट पर एक दो नहीं बल्कि कई भाजपा नेताओं का दिल अटका हुआ है। जैसा कि पूर्व में भी हमने बताया था कि तीसरी किश्त में हम बात करेंगे नवीन दुम्का को मिलने जा रही एक ऐसी चुनौती की जो पार्टी के भीतर की तो नहीं है लेकिन उससे किसी भी दशा में कमतर भी नहीं है। कांग्रेस भले ही नवीन दुम्का के पार्टी वोटों पर सेंधमारी कम करे लेकिन यह चुनौती दुम्का की आखों से काजल चुराने में सक्षम है। नाम है जिला पंचायत सदस्य डा. मोहन सिंह बिष्ट।
दरअसल नवीन दुम्का और डा. मोहन सिंह बिष्ट के बीच कई सालों से राजनीतिक अखाड़े में 36 का आंकड़ा रहा है। हालांकि नवीन ने पिछले पंचायत चुनावों में इस आरोप का खंडन किया था लेकिन डा. मोहन सिंह के समर्थकों के मन से इस बात को निकालने में वे सफल नहीं हो सके थे कि जिला पंचायत सीट से डा. बिष्ट का टिकट दुम्का के कहने पर ही काट कर उनके भाई के हवाले कर दिया गया था। जब पार्टी के फैसले का विरोध हुआ तो बिष्ट को पार्टी से बेदखल कर दिया गया। अगर आपको स्मरण हो तो उस दौरान बिष्ट समर्थकों ने नवीन दुम्का के खिलाफ नारेबाजी भी की थी।
इसके बाद बिष्ट ने भाजपा के टिकट पर चुाव लड़ने मैदान में उतरे अपने ही भाई के खिलाफ चुनाव लड़ा। चूंकि मोहन बिष्ट भाजपा के पुराने नेता रहे हैं। जनता ने माना कि पार्टीग् ने उन्हें टिकट न देकर उनके साथ अन्याय किया है और बिष्ट के प्रति सहानुभूति की ऐसी लहर दौड़ी कि जिला पंचायतों में प्रदेश की सबसे जीत उनके नाम दर्ज हो गई।
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अब मोहन बिष्ट एक बार फिर विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने के लिए अपने कील कांटे दुरूस्त कर रहे हैं। कुछ दिन पहले उनके भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं उठीं। वे सिर्फ चर्चाएं ही साबित हुई। स्वयं बिष्ट कहते हैं ‘आफर आया था लेकिन मैंने साफ कर दिया कि मैं अपने समर्थकों की राय के बगैर कोई कदम नहीं उठाउंगा।’
आज की तारीख में मोहन बिष्ट की जो पहचान भाजपा से निकाले जाने के कारण बनी है, उसके लिए भाजपा में रह कर वे तरस रहे थे। बकौल बिष्ट ‘ मेरे चुनाव क्षेत्र के लोग स्वयं कहते हैं कि जिला पंचायत सदस्य रहते हम आपसे किसी काम की उम्मीद नहीं कर सकते, हम जानते हैं कि सरकार आपके कामों पर अड़ंगा लगाएगी, लेकिन हम आपको विधायक बनाकर भेजेंगे तो हम आपसे क्षेत्र विकास की उम्मीद रखेंगे।’
बिष्ट साफगोई से कहते हैं कि ‘हम विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं, भाजपा में जाकर टिकट न मिले और फिर मुझे निकाला जाए, इससे अच्छा तो निर्दलीय चुनाव लड़ना ही बेहतर रहेगा।’ यानी साफ है कि बिष्ट सोच समझ कर घर वापसी की योजना को टाल रहे हैं। चूंकि वे चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं इसलिए यदि उनकी भाजपा में वापसी होती है तो टिकट की शर्त पर ही होगी। यानी नवीन दुम्का के लिए एक और मुश्किल।
पिछले जिला पंचायत चुनाव के परिणामों को देखकर साफ हो गया था कि भाजपा के अंदर के भी वोटों पर भी मोहन सिंह बिष्ट ने अच्छी खासी सेंधमारी की थी। वर्ना पार्टी समर्थित प्रत्याशी की इतनी बुरी स्थिति न होती। इसीलिए हमने ऊपर कहा कि बिष्ट नवीन दुम्का की आखों से काजल चुराने में सक्षम हैं।
सीटिंग कैंडीडेट को टिकट मिलने की स्थिति में नवीन दुम्का के सामने मोहन बिष्ट एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने होंगे। भाजपा कार्यकर्ताओं से उनके पुराने संबंध है। अब जिला पंचायत चुनाव जीतने के बाद अधिकांश लोग मान रहे हैं कि उस वक्त उनके साथ अन्याय किया गया था।
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यहां स्थिति कुछ कुछ महाभारत के कर्ण पांडव प्रसंग जैसी लग रही है। कर्ण थे तो पांडवों को सहोधर
लेकिन उपेक्षावश युद्ध भी उनके ही खिलाफ लड़े। वे आजीवन पांडवों के लिए बड़ा खतरा बने रहे। कृष्ण न होते तो पांडवों को कर्ण भारी भी पड़ सकते हैं। कुछ इन्हीं हालातों में आज वर्तमान विधायक नवीन दुम्का जा फंसे हैं।
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हालांकि अभी चुनावों में निर्णायक समय बाकी है, और कहा नहीं जा सकता है राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है। इसलिए इस समीक्षा को आज की तिथि तक ही माना जाए। राजनीति में कहां, कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता। इसलिए नवीन दुम्का को मोहन बिष्ट के लिए भी एक कृष्ण की तलाश होगी।