साल का अंतिम…जिंदगी तो नहीं बदली खुद बदल गया, आंकड़े दिखाकर सपनों पर चप्पल फिरा गया
बदल गया साल…। अजी नहीं! हम कैलेंडर बदलने की बात नहीं कर रहे!
हम तो कह रहे हैं कि पलटी मार गया 2022…
जब आया था तो कहता था…सब कुछ बदल दूंगा! अब देखो, बदला तो कुछ भी नहीं…खुद साल ही बदल गया।
यानी यूं समझ लो कि साल का हाल तो नेताओं से भी बुरा हो गया है। नेता तो 5 साल में एक बार वादे से पलटते हैं…मगर ये साल तो हर साल पलटी मार जाता है।
नेताओं की तरह बड़ी-बड़ी बातें करवा लो बस इससे। आते-आते कोरोना की लहर में चुनावी रैलियां करवा रहा था। हम चिल्लाए, अबे! कर क्या रहे हो? कंट्रोल करो नेताओं को…।
सीना चौड़ा करके बोला था 2022…अब आ गया हूं, सारे नेताओं को टाइट कर दूंगा। खाक टाइट करेगा…रैलियां रोकने की जगह खर्चे की लिमिट ही बढ़ा दी! जमकर करो रैली पर खर्चा…कोई नहीं रोकेगा।
वादे करता है बस बड़े-बड़े…
2022 कहता था, आने दो मुझे, फिर चप्पल वाले भी हवाई जहाज में बैठेंगे। आहा हा! क्या सपना था! हमने तो जूते ही नहीं खरीदे कि अब तो जूते के बजट में हवाई जहाज की सवारी हो जाएगी!
…मगर हुआ क्या? चप्पल वाले हवाई जहाज में क्या बैठेंगे, अब तो हवाई जहाज में बैठने वालों के लिए चप्पल तक अफोर्ड करना मुश्किल हो गया। पूछो तो कहता है 2022, मैं क्या करूं! महंगाई पर मेरा बस थोड़े है!
आंकड़े दिखाकर सपनों पर चप्पल फिरा गया।
एक सपना और दिखाया था इस मुए 2022 ने…। कहता था, आने दो मुझे…क्रिकेट की पिच पर 9 साल का सूखा मैं ही मिटाऊंगा। आईसीसी की ट्रॉफी तो मैं ही घर लाऊंगा…
इस आस ने क्या-क्या नहीं करवाया। पेट काट-काटकर टीवी रिचार्ज कराते रहे…स्टेडियम न जा सके तो क्या, हम घर बैठे ‘इंडिया-इंडिया’ चिल्लाते रहे। गला बैठ गया…और अब तो दिल भी बैठ गया। बीत गया 2022…ट्रॉफी फिरंगी उठा ले गए।
अम्मा कसम! बड़ा ढीठ है 2022! कहता है, ट्रॉफी की बरसात न हुई तो क्या हुआ, खिलाड़ियों पर पैसों की बरसात तो हुई है। खुश हो जाओ क्योंकि क्रिकेट की दुनिया के अंबानी-अडानी तो अपने घर के हैं। फिरंगी ट्रॉफी ले गए तो क्या…हमारे वाले नोट बटोर लाए।
अब बताओ भला! ये कोई बात हुई! कोहली से किशन तक कमाने में जुटे हैं और हम कप की आस में आधे हुए जा रहे हैं। मगर फिकर नहीं…2023 में वर्ल्ड कप खिलाने तो सब यहीं आएंगे। लठैत-बंदूकची बिठा देंगे…लेकिन कप नहीं जाने देंगे।
अरे! सपने दिखाकर मुकर भर जाता तो माफ भी कर देते 2022 को। लेकिन ये तो जाते-जाते हवा टाइट करता जा रहा है।
कहता था, 2020 और 21 तो कोरोना की दहशत में काट लिए…मगर अब चिंता न करना। मैं तो कोरोना को खत्म ही कर दूंगा। साल बीतते-बीतते कोरोना बीते जमाने की बात हो जाएगी।
…मगर लो! गच्चा दे गया 2022…खुद तो निकल लिया, कोरोना को फिर यहीं छोड़ गया। कमबखत कहता है, मुझे लगा था चाइनीज माल 3 साल से ज्यादा क्या चलेगा? चीन वाले ही बेमंटी कर रहे हैं।
अम्मा कसम! चीन पर गुस्सा तो इतना आता है कि जी करता है चीनी भी छोड़ दें। लेकिन फैमिली वाले वॉट्सऐप ग्रुप में पढ़ा था सुबह-सुबह चीनी फांकने से कोरोना नहीं होता।
हम तो रोज सुबह खाली पेट 5 चम्मच फांकने लगे थे, फिर किसी ने बताया…ताया जी का लाडला फूफा जी की फिरकी ले रहा था। शुगर है हमारे फूफा को…
अब आप भी वॉट्सऐप देखकर डाक्टरी न करने लगना…मास्क लगा लेना।
मानना पड़ेगा…ढीठपने में नेताओं को टक्कर दे रहा है 2022…। मुआ! जाते-जाते भी कह रहा है, 2023 सब कुछ बदल देगा! धीरज धरो, 2023 में तो हर सिर पर छत होगी, मोबाइल मन से भी तेज चलेगा और हवाई जहाज से भी तेज ट्रेन चलेगी।
आस पर फिर पूरा साल काट लेंगे…लेकिन 2023 भी गच्चा दे गया तो?
इस बार गच्चा नहीं खाएंगे हम।
मित्रो! 2023 ने सबकुछ न बदला…तो 2024 को आने नहीं देंगे, कहे देते हैं अभी से!
चित्र व आलेख साभार—दैनिक भास्कर