हल्द्वानी : किसान संगठनों के देशव्यापी आह्वान पर माले और किसान महासभा ने मनाया काला दिवस

हल्द्वानी। किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे होने और किसान-मजदूर विरोधी मोदी सरकार के निरंकुश कुशासन के 7 साल पूरे होने पर संयुक्त किसान मोर्चा, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति व विभिन्न केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा 26 मई को राष्ट्रव्यापी “काला दिवस” मनाने का आह्वान किया गया था। इस आह्वान के समर्थन में भाकपा (माले) और किसान महासभा के कार्यकर्ताओं द्वारा अपने-अपने घरों से कोविड गाइडलाइंस का पालन करते हुए “काला दिवस” मनाया गया और काले झंडे लहराए गए।

गौरतलब है कि तीन किसान विरोधी कानून रद्द करने, बिजली संशोधन बिल 2020 वापस लेने, सभी कृषि उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर 550 किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा दिल्ली की बॉर्डरों पर चल रहे किसान आंदोलन को 26 मई को छह माह पूरे हो गए हैं। लेकिन सरकार किसानों की मांगों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है इसी कारण किसानों ने 26 मई को देशव्यापी काला दिवस मनाने का निर्णय लिया।

इस मौके पर अपने बयान में भाकपा माले के राज्य सचिव राजा बहुगुणा ने कहा कि, “मोदी सरकार ने 2014 के कार्यकाल में सबसे पहले किसानों से जमीन छीनने का कानून बनाया था ताकि इंडस्ट्री को सुविधा हो। इसके लिए उन्होंने अध्यादेश लाया। जमीन छीनने के कानून का सभी ने पुरजोर विरोध किया आखिरकार उसे कानूनी रूप नहीं दिया जा सका। और अब किसानों के भारी विरोध के बावजूद मोदी सरकार तीन काले कृषि कानून थोपने पर आमादा है।” उन्होंने कहा कि, “मोदी सरकार सिर्फ किसान मजदूर विरोधी ही नहीं, जनविरोधी भी है। मोदी सरकार जनता को हर रोज नए संकट में धकेल रही है। यह बात कोविड महामारी से निपटने में अपनाये गए जनविरोधी तौर तरीकों से पूरी तरह साबित हो चुकी है।”

माले राज्य सचिव ने कहा कि, “मोदी सरकार कृषि कानूनों को रद्द कराने को लेकर आपराधिक चुप्पी साधे हुए है और अब किसान आंदोलन को कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहरा रही है जबकि तथ्य यह है कि पांच राज्यों के चुनाव प्रचार और कुंभ मेला से देश में कोरोना बढ़ा है। जिसको लेकर देश भर के लोगों में आक्रोश है। कोरोना महामारी के दौरान जिस तरह से मोदी सरकार ने आपराधिक लापरवाही और उदासीनता का परिचय दिया उसके परिणामस्वरूप देश में मौत का तांडव जारी है।” राजा बहुगुणा ने कहा कि, “चार लाख से अधिक गाँवों में कोरोना संक्रमण फैल चुका है। गांवों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर, दवाई, ऑक्सीजन एवं संसाधनों का अभाव है जिससे गांव में रहने वाली अधिकांश आबादी प्रभावित हुई है। सरकार कोरोना से मरने वाले मरीजों का आंकड़ा छुपा रही है। बीमारी आपदा प्रबंधन के तहत गांव स्तर पर कोरोना संक्रमण से मौत की सूची जारी कर मरने वालों के परिजनों को चार लाख रूपये मुआवजा राशि दी जानी चाहिए।”

अखिल भारतीय किसान महासभा के संयोजक बहादुर सिंह जंगी ने कहा कि, “जैसे अंग्रेजों ने देश को उपनिवेश बनाया था उसी तरह किसानों को सरकार अम्बानी – अडानी का गुलाम बना रही है। यह कारपोरेट के लिए, कारपोरेट द्वारा चलाई जा रही, कारपोरेट की सरकार है।”

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उन्होंने कहा कि, “किसान आंदोलन कारपोरेट राज के खिलाफ है। लॉकडॉउन की वजह से जब कंपनियां बंद हो गई थी तब कृषि क्षेत्र ने ही जीडीपी को संभाले रखा था उसी कृषि क्षेत्र और किसानों को मोदी सरकार तबाह करने पर जुटी है। इसको स्वीकार नहीं किया जायेगा।”

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मांग की गई कि तत्काल –
तीनों काले कृषि कानून वापस लो, चार लेबर कोड रद्द करो, सबके लिए मुफ्त वैक्सीन की व्यवस्था करो।

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आज विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम करने वालों में राजा बहुगुणा, बहादुर सिंह जंगी, डॉ कैलाश पाण्डेय, विमला रौथाण, पुष्कर दुबड़िया, स्वरूप सिंह दानू, राजेन्द्र शाह, चन्दन राम, धीरज कुमार, हरीश चंद्र सिंह भंडारी, शिवा कोरंगा, निर्मला शाही, किशन बघरी, सरोज, सोनी, बीना, टोनी, विकास सक्सेना, अभिषेक, ललित मेहरा आदि शामिल रहे।

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