स्याह हकीकत #नालागढ़ : भविष्य को छोड़िए जनाब ये बच्चे कूड़े के ढेर में खाना ढूंढ रहे हैं

नालागढ़। तरक्की की पायदान नापते हिमालयी राज्यों की अगुवाई करने वाले हिमाचल का एक स्याह पक्ष यह भी है, जो सूरज की रोशनी में भी उतना ही प्रकाशित है जितने की यहां के आलीशन बंगले, उद्योगों की ऊंची ऊंची चिमनियां और हर रोज यहां से वहां फर्राटा भरती चमचमाती गाड़ियां। अंतर सिर्फ इतना है कि समाज के इस पक्ष को देखने की या तो किसी को फुसर्त नहीं है या फिर हम अपनी जिम्मेदारियों से आखें चुराने के आदी हो चुके हैं।


वैसे कहते हैं कि एक चित्र हजारों शब्दों की भाषा बोल देता है, और यहां तो कई चित्र है। चित्र में कई चेहरे हैं जो कानून की बाध्यता के कारण हम आपको नहीं दिखा सकते। वर्ना यह बाध्यता न होती तो हम उन चेहरों पर लिखी मजबूरी की कितनी ही तहरीरें आपको पढ़ा देते।


यूं तो हम जिस समाज में रहते हैं वह सभ्य समाज कहलाता है। लेकिन इन चित्रों में दिख रहे बच्चों के लिए इस समाज के कोई मायने नहीं हैं। आसमान से बातें करती इमारतों और वहां से निकलती चमचमाती गाडियों को दखेकर इनके अरमान में करवट लेते हैं लेकिन उसके साथ पेट में भूख के कीड़े भी अपना सिर उठाने लगते हैं। पेट भरा हो तो ख्वाब भी अच्छे आते हें लेकिन इन बच्चों की आखों ने ऐसा आखिरी ख्वाब कब देखा होगा शायद उन्हें भी याद नहीं। उनके ख्वाब में आते हैं इससे भी बड़े कूड़े के ढेर, उनमें पड़ी पन्नियां, उसमें भरा गया जूठन और ऐसे ही कुछ अन्य सामान।
यह बच्चे वो सबकुछ अपने पेट में उड़ेल लेते हैं जो उन्हें इन कूड़े के ढेर में आवारा पशुओं के जाने के बाद पड़ा मिल जाता है।


क्या कहा आपने स्कूल… यह तो इनके लिए दूर की कौड़ी है जनाब, इन्हें पेट भरने का जुगाड़ होने के बाद अपने भाई बहनों की चिंता भी होती है। उनकी सुबह… सुबह के इंतजाम में कटती है और शाम, शाम के इंतजाम करने में ही बीत जाती है। इन दिनों कूड़े के ढेर में कबाड़ के साथ खाने का सामान ढूढते इन बच्चों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। दावा है कि यह वीडियो सैनी माजरा के पास के है। अगर वहां के नहीं भी होते ते क्या फर्क पड़ना था, हैं तो एक स्याह सच्चाई।


दावा किया जा रहा है कि यह तस्वीरें नालागढ़ के सैनी माजरा में कुछ प्रवासी बच्चों की हैं। जोकि कूड़ेदान से कुछ खाने के लिए ढूंढते हुए दिखाई दे रहे हैं। प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र बद्दी बरोटीवाला नालागढ़ है और यहीं से सबसे ज्यादा राजस्व प्रदेश सरकार के खाते में जमा होता है या फिर यूं कहें कि औद्योगिक क्षेत्र बद्दी बरोटीवाला नालागढ़ से ही हिमाचल सरकार चल रही है और बाहरी राज्यों से क्षेत्र में रोजी-रोटी की तलाश में आए प्रवासियों के बच्चों को कूड़ेदान से खाना ढूंढना पड़ रहा है। अब सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा बच्चों के लिए शिक्षा को लेकर अनेक योजनाएं चलाई जा रही है, लेकिन क्या यह बच्चे उन योजनाओं में नहीं आते। क्या ऐसे बनेगा देश का भविष्य।

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इस बारे में जब हमने स्थानीय लोगों से बात की तो उनका कहना है कि जैसे-जैसे क्षेत्र में औद्योगिकरण हुआ तो यहां पर बाहरी राज्यों से प्रवासियों का आना भी हुआ और उनके साथ उनके बच्चे भी आए लेकिन गरीबी और बेबसी के चलते अब यह प्रवासी बच्चे ऐसे ही कूड़ेदान से या फिर कबाड़ इकट्ठा करके उसे किसी दुकान पर बेच कर अपने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते हैं। लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा अनेक स्कीमें तो चलाई जा रही है लेकिन उनका फायदा इन प्रवासी बच्चों को नहीं मिल रहा है।

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जिसके चलते यह बच्चे अपनी मजबूरी के कारण ऐसे अपनी रोजी-रोटी तलाश रहे हैं। लोगों का कहना है जिला स्तर पर जिला अधिकारी द्वारा एक कमेटी का गठन किया जाए और पूरे जिले में ऐसे बच्चों की तलाश की जाए और उनके लिए रहने खाने पीने और पढ़ाई की व्यवस्था की जाए। तब जाकर यह बच्चे पढ़ लिख कर आगे कुछ कर सकते हैं लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो इनकी जिंदगी इसी तरह नर्क में बीत जाएगी और देश का भविष्य गर्त में डूब जाएगा अब देखना होगा कि इस वायरल वीडियो पर सरकार कोई ठोस कदम उठाती है या नहीं ।

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