काउंट डाउन…7 दिन शेष : तो क्या निर्दलीय निभाएंगे सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका

तेजपाल नेगी
हल्द्वानी।
विधानसभा चुनावों के लिए हुई वोटिंग की मतगणना होने के अब सिर्फ सात दिन शेष है।जनता की अदालत में अपना भाग्य आजमा रहे नेताओं के लिए यह सप्ताह दिलों की धड़कनें बढ़ाने वाला साबित होने जा रहा है। चुनाव प्रचार में अपनी व अपने दलों की प्राथमिकताएं गिनाने के बाद अब उनके हाथ में करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। जनता ने भी अपना फैसला ईवीएम में कैद कर दिया है बची है तो सिर्फ मतगणना।

हालांकि मतदान के बाद भी नेता शांत नहीं रहे। मतदान के बाद कई दिनों तक तो उन्होंने बूथवार अपने अपने समर्थकों के साथ आंकड़े जुटाए और अब उनके सामने काफी हद तक तस्वीर भी साफ हो चुकी होगीं, बस अब चुनाव आयोग की औपचारिक घोषणा का इंतजार है।

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इन सात दिनों में हम आपको राजनीतिक गलियारों की हर हलचल से अवगत कराते रहेंगे। फिलहाल जो अनाधिकृत आंकड़े सामने आ रहे हैं उससे आशंकाएं उठ रही हैं कि दस मार्च का दिन प्रदेश में भाजपा के लिए शुभ समाचार लेकर नहीं आ रहा है। उसके बड़े—बड़े सूरमाओं के चुनाव क्षेत्रों से अच्छी रिपोर्ट नहीं आ रही है।

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हां यह संभव हो सकता है कि उसके बाद के दिन राजनीतिक समीकरणों के बनने बिगड़ने से उसके पक्ष में चले जाएं। यह सब निर्दलीयों की संख्या पर निर्भर करेगा। यह भी संभावना जताई जा रही है कि इस बार जब मतगणना के अंतिम परिणाम सामने आएंगे तब निर्दलीय के रूप में विजय प्राप्त करने वालों की संख्या इतनी होगी कि वे सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका अदा कर सकें।

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यह स्थिति कांग्रेस और भाजपा जिसकी भी सीटें बहुमत के आसपास होगी उनके लिए कुछ सुविधाजनक हो सकती है। यदि निदर्लीयों की संख्या पांच के आसपास रही तो पश्चिम बंगाल का सुपर हिट बीज ‘खेला होवे’ उत्तराखंड की पथरीली जमीन पर अंकुरित हो सकता है। कल पूर्व सीएम और कांग्रेस के नेता हरीश रावत ने इस ओर इशारा करते हुए कहा भी है कि मतगणना के बाद भाजपा के खेल को सफल नहीं होने दिया जाएगा।

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हालांकि उत्तराखंडी जनता के राजनैतिक प्रकृति, सत्ताधारी दल की कारगुजारियां, स्थानीय मुद्दों के गुब्बारों की हवा और मतदाता के हवाभाव देखकर लग रहा है कि इस बार भाजपा के लिए दोबारा से सत्ता हासिल करने का लक्ष्य हासिल करना थोड़ा कठिन है। इसके विपरीत कांग्रेस के साथ यदि तराई का इलाका भी जुड़ जाता है तो बहुमत के जादुई आंकड़े को छूना उसके लिए कोई कठिन काम नहीं लग रहा लेकिन मतगणना तक यह सब दावे से नहीं कहा जा सकता है।

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