उत्तराखण्ड…चिंता की खबर: खरीददारों ने कीटनाशकों और रसायनों की तय सीमा से अधिक होने के कारण चाय की खेपों की एक सीरीज को वापस लौटाया
देहरादून। विदेशों में पसंद की जाने वाली भारतीय चाय के उत्पादकों के लिए एक चिंता वाली खबर सामने आई है। खबर यह है कि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू खरीदारों ने कीटनाशकों और रसायनों की तय सीमा से अधिक होने के कारण चाय की खेपों की एक सीरीज को वापस लौटा दिया है।
भारतीय चाय निर्यातक संघ के अध्यक्ष अंशुमान कनोरिया ने बताया है कि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू खरीदारों ने कीटनाशकों और रसायनों की तय सीमा से अधिक होने के कारण चाय की खेपों की एक सीरीज को वापस लौटा दिया है।
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वैश्विक चाय बाजार में श्रीलंका की स्थिति कमजोर पड़ने पर भारतीय चाय बोर्ड निर्यात में तेजी लाने पर विचार कर रहा है हालांकि, खेपों की अस्वीकृति के कारण बाहरी शिपमेंट में गिरावट आ रही है। कनेरिया ने समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा कि देश में बेची जाने वाली सभी चाय भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के मानदंडों के अनुरूप होनी चाहिए। हालांकि, अधिकांश खरीदार चाय खरीद रहे हैं जिसमें रासायनिक सामग्री असामान्य रूप से उच्च है।
प्रदेश के चंपावत जिले में चंपावत, लोहाघाट, अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी, भिकियासैंण, चौखुटिया, द्वाराघाट, हवालबाग, बागेश्वर जिले कपकोट, गरुड़, पौड़ी के कल्जीखाल, खिसू्र, पाबौ, पिथौरागढ़ के बेरीनाग, डीडीहाट, मुनस्यारी, उत्तरकाशी के भटवाड़ी, रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ, अगस्त्यमुनि, जखोली, टिहरी जिले के जाखणीधार, चंबा, नरेंद्र नगर, चमोली जिले के गैरसैंण, धराली, पोखरी क्षेत्र में चाय की खेती के लिए जमीन का चयन किया गया है। जहां पर असम, मणिपुर, केरल की दर्ज पर चाय के नए बागान विकसित किए जाएंगे।
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प्रदेश में वर्तमान में लगभग 14 हजार हेक्टेयर भूमि पर चाय की खेती की जा रही है। सालाना 90 हजार किलोग्राम चाय का उत्पादन किया जा रहा है। चमोली जिले के नौटी, चंपावत और नैनीताल जिले के घोड़ाखाल क्षेत्र में 485 हेक्टेयर क्षेत्रफल में जैविक चाय तैयार की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ग्रीन जैविक चाय का की काफी मांग है। हालांकि अंतराष्टीय बाजार से इस तरह से चाय की एक बड़ी खेप का वापस आना शुभ संकेत नहीं है लेकिन कहा जा रहा है कि जैविक चाय में इस तरह से कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है ऐसे में उत्तराखण्ड की चाय को बाजार मिलना कठिन नहीं होगा।
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कनेरिया ने बताया है कि कानून का पालन करने के बजाय कई लोग सरकार से भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के मानदंडों को और अधिक उदार बनाने का आग्रह कर रहे हैं लेकिन यह एक गलत संकेत देगा क्योंकि पेय को स्वास्थ्य पेय माना जाता है।
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उत्तराखण्ड राज्य में चाय की खेती के विस्तार से उत्पादन बढ़ने के साथ ही हजारों लोगों को रोजगार मिलने के प्रयास को एक बड़ा झटका लगा है । बताते चलें कि उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड ने प्रदेश के नौ जिलों में चाय के नए बागान विकसित करने के लिए 48 हजार हेक्टेयर जमीन का चयन किया है। इस जमीन की बोर्ड ने मृदा परीक्षण (सोयल टेस्टिंग) भी कर दी है।
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जल्द ही चाय के पौधरोपण का कार्य शुरू किया जाएगा। चाय की खेती के लिए भूमि देने वाले किसानों को प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति को रोजगार भी उपलब्ध कराया जाएगा। सरकार का मानना है कि चाय खेती से 15 हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध होगा।
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