पर्यावरण संस्थान कोसी में तीन दिवसीय बहुहितधारक चर्चा कार्यक्रम का हुआ शुभारम्भ
अल्मोड़ा। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD), गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान (NIHE), और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC), भारत सरकार, मिल कर “रीथिंकिंग इकोसिस्टम बेस्ड अप्रोच (ई.बी.ए.) फॉर वाटर, लाइवलीहुड्स, एंड डिजास्टर रिस्क रिडक्शन इन द इंडियन हिमालया” विषय पर एक बहुहितधारक चर्चा कार्यक्रम का तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन दिनांक 11 सिंतम्बर से प्रारम्भ हो गया हैं।
कार्यशाला में स्थायी भूमि और जल संसाधन प्रबंधन, पारिस्थितिकी तंत्र सेवा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, और टिकाऊ आजीविका आदि में रुचि रखने वाले विषय विशेषज्ञ एकत्रित हो कर चर्चा करेंगे। इस कार्यक्रम का लक्ष्य पारिस्थितिकी आधारित समाधान (EbA) पर होगा जो जल असुरक्षा, आजीविका असुरक्षा और आपदा जोखिम के साथ सामाजिक चुनौतियों का समाधान करेगा।
कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए संस्थान के निदेशक प्रो0 सुनील नौटियाल ने सभी गणमान्य अतिथियों तथा विषय विशेषज्ञों का स्वागत किया तथा संस्थान के उद्देश्यों, हिमालयी क्षेत्र की समस्याओं तथा उनके समाधानों पर चर्चा की। इसी क्रम में उन्होनें बताया कि किस प्रकार बढ़ती जनसंख्या तथा शहरीकरण का प्रभाव हिमालयी क्षेत्र में देखा जा रहा है। उनके द्वारा बताया गया कि हमारा संस्थान जलवायु परिवर्तन में हो रहे बदलाव को कम करने में विभिन्न शोध कार्यों द्वारा महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। उनके द्वारा यह भी बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से प्राकृतिक संसाधनों में हो रहे बदलावों को निरन्तर महसूस किया जा रहा है।
इसी क्रम में आगे बढते हुए उन्होने हिमालयी क्षेत्र के जैव विविधता क्षरण से संबंधित विषयों पर प्रकाश डाला। इसके उपरान्त एफ0सी0डी0ओ0 से जुडे़ जॉन वॉरबर्टम ने विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किये। उन्होने बताया कि विभिन्न देशों की संस्थाऐं मिलकर जलवायु परिवर्तन से हो रहे बदलावों को कम कर सकती है तथा समय-समय पर इस प्रकार की कार्यशालाओं के आयोजन से तकनीकी निवारण पर विचार-विमर्श कर हिमालयी क्षेत्र में जनमानस हित के लिए नीतियों का निर्माण किया जा सकता है। इसी क्रम में शेखर घिमरे, निदेशक आई0सी0आई0एम0ओ0डी0 ने उनके संस्थान द्वारा हिमालयी क्षेत्र में किये जा रहे विभिन्न कार्ययोजनाओं पर प्रकाश डाला तथा प्राकृतिक संसाधनों के मानव जीवन में महत्वपूर्ण योगदान के प्रति अवगत कराया। डॉ0 घिमरी ने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप हिमनद् में बदलाव, परमाफ्रॉस्ट कम होने से अप्रत्यशित आपदाओं, भूस्खलन, इत्यादि को देखा जा रहा है। इसी क्रम में उन्होने कहा कि मध्यम अवधि की कार्य योजनाओं से जलवायु परिवर्तन से हो रहे बदलाओं को कम किया जा सकता है।
इसके उपरान्त डा० वन्दना शाक्या, आई0सी0आई0एम0ओ0डी0 हिमालयन, रैसिलियनस् इनैबलिन्ग एक्शन प्रोग्राम पर प्रस्तुतिकरण करते हुए यह बताया कि पारिस्थितिक तंत्र आधारित दृष्टिकोण से, हिमालयी क्षेत्र के जलवायु परिवर्तन से हो रहे बदलाव को कम कर सकते हैं। उन्होनें कहा कि नई तकनीकों का उपयोग करते हुए जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हुए विभिन्न बदलावों के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भुमिका निभाई जा सकती है। तत्पश्चात, संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 आई0डी0 भट्ट ने तीन दिवसीय कार्यशाला के मुख्य उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली नई चुनौतियों से उत्पन्न प्रभावों के निवारण के लिए भविष्य में विभिन्न कार्ययोजनायें तैयार की जा सकती है।
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रो0 एस0पी0 सिंह, पूर्व कुलपति, हेमवती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर ने भूगर्भ शास्त्र के जैव विविधता प्रबन्धन में योगदान के बारे में अवगत कराया एंव कहा हिमालयी क्षेत्र में उपस्थित प्राकृतिक संसाधनों एंव जैव विविधता के संरक्षण हेतु संसाधनों के सतत् उपयोग हेतु जनमानस को जाग़़़रूक करने की आवश्यकता है। इसके पश्चात डॉ0 हेम पाण्डे (पूर्व सचिव, भारत सरकार) द्वारा बताया गया कि विज्ञान की विभिन्न शाखाओं को आपस में मिल कर कार्य करने की आवश्यकता है। जिससे हम हमारे आस-पास के प्राकृतिक संसाधनों में हो रहे बदलाव से उत्पन्न नई चुनौतियों के समाधान ढूढने में सहायक हो सकते हैं।
कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि श्री अजय टम्टा (सांसद,
पिथौरागढ़-अल्मोड़ा क्षेत्र) ने कहा कि विभिन्न वैज्ञानिक तकनीको का उपयोग कर, जलवायु परिवर्तनों के कारण आने वाली नई चुनौतियों एवं आपदाओं का पूर्वानुमान लगया जा सकता है। जिससे हम उनके प्रभावों को कम कर सकते हैं। उन्होने आगे बताते हुए कहा कि हमे हिमालयी औषधीय पादपों के हो रहे व्यपार एवं उनकी मूल्य श्रृंखला का अवलोकन एवं अन्वेषण करने की आवश्यकता है जो जैवविविधता संरक्षण एवं सामाजिक मांग के निवारण में सहायक हो सकती है। इसके उपरान्त उन्होने भाँग एवं चीड़ के नकारात्मक गुणों को नकारते हुए कहा कि हमें इनके सकारात्मक गुणों का अवलोकन कर एवं नकारात्मक प्रभावों को कम कर इन्हें मानव हित एवं जैवविविधता संरक्षण में उपयोग करना चाहिए।
इस तीन दिवसीय कार्यशाला में 11 राज्यों के 27 विषय विशेषज्ञों के साथ सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों एवं शोधार्थियों द्वारा कुल 80 प्रतिभागियों के द्वारा प्रतिभाग किया जा रहा है जो कि प्रथम दिवस के कुल तीन सत्रों में मष्तिष्क मंथन कर रहे हैं.
कार्यशाला के द्वितीय तथा अंतिम दिवस पर ईबीए-सिद्धांतों और डिज़ाइन मानदंड और मानक पर साझा समझ विकसित करना, अंतर-क्षेत्रीय समन्वय के लिए संस्थागत नवाचार तथा स्केलिंग स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर विचार मंथन किया जाएगा.।