लालकुआं…कहिए नेता जी 1 : भाजपा के अंदर नेताओं और कार्यकर्ताओं का मन मोहने की चुनौती है मोहन बिष्ट के सामने

लालकुआं। प्रदेश की सबसे हॉट सीटों में शुमार लालकुआं विधानसभा सीट का ताप अचानक ही बढ़ा और कुछ ही घंटों के भीतर लालकुआं का नाम प्रदेश की सबसे चर्चित सीटों में शामिल हो गया। अब प्रदेश के हर नागरिक की नजर खटीमा और लालकुआं दोनों सीटों पर ही टिकी हुई हैं। 111701 मतदाताओं वाली इस सीट पर कांग्रेस ने हरीश रावत को चुनाव मैदान में उतारा है। तो भाजपा ने पंचायत चुनावों के बाद एकदम बाद पार्टी से 6 साल के लिए बेदखल किए मोहन सिंह बिष्ट को पार्टी में वापसी करवा कर उन्हें विधायक का टिकट दे दिया। इससे पहले मोहन निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। उनका भाजपा में जाने का फैसला सही होगा या गलत यह तो कह नहीं सकते लेकिन यह तय है कि हरीश रावत से हार कर भी पार्टी में उनका नाम बड़ा हो जाएगा।


दरअसल मोहन सिंह बिष्ट पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य के लिए भाजपा का टिकट मांग रहे थे। लेकिन पार्टी ने उन पर विश्वास न जता कर उनके बड़े भाई को टिकट थमा दिया। नाराज मोहन सिंह बिष्ट निर्दलीय मैदान में उतरे और उन्होंने अपने ही सगे बड़े भाई को चारों खाने चित कर दिया। इसके बाद भाजपा ने मोहन सिंह को छह साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। मोहन अपनी तैयारी करते रहे और इस बार उन्होंने विधानसभा चुनावों में ताल ठोक ही दी। हालांकि भाजपा में निवर्तमान विधायक नवीन दुम्का, कमलेश चंदोला, भाजपा के जिला अध्यक्ष प्रदीप बिष्ट, पवन चौहान और हेमंत द्विवेदी सहित कई अन्य नेता पार्टी में टिकट की दावेदारी कर रहे थे। भाजपा असमंजस में थी लेकिन अचानक टिकट जारी होने से कुछ दिन पहले लालकुआं की राजनीति में धमाका हुआ और मोहन सिंह​ बिष्ट निर्दलीय की तैयारियों को समेट कर अपने कुछ खास सिपाहासालारों के साथ भाजपा में जा मिले।

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इसके चंद ही दिनों के भीतर भाजपा के टिकटों की लिस्ट जारी होती है और तमाम दावेदारों में सन्निपात की स्थिति हो गई। भाजपा के तमाम दावेदार या तो भूमिगत हो गए या फिर वे दूसरे प्रत्याशियों के साथ चुनाव प्रचार में जुट गए। मोहन सिंह बिष्ट अब भाजपा के प्रत्याशी हैं। उन्हें अपनी मेहनत और पार्टी के कैडर पर यकीन था और जीत आसान दिख रही थी। लेकिन उनके लिए बुरी खबर यह आई कि अचानक कांग्रेस से संध्या डालाकोटी का नाम डिक्लेयर हो गया। यहांतक तो ठीक था लेकिन इससे कंग्रेस के हरीश चंद्र दुर्गापाल और हरेंद्र बोरा ने पार्टी से विद्रोह कर दिया। पार्टी ने अपने फैसले पर पुनर्विचार किया और संध्या का टिकट काटकर कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हरीश रावत को मैदान में उतार कर भाजपाई मोहन सिंह बिष्ट की चुनौती को बड़ा कर दिया।

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अब दिक्कत यह है कि भाजपा के पवन चौहान विद्रोह करके निर्दलीय मैदान में उतर चुके हैं और बाकी के दावेदार उनके चुनाव प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं। पार्टी में मोहन के साथ असहज वाली स्थिति पैदा हो रही है। दूसरी ओर पवन चौहान भाजपा को डैमेज पहुंचाने की तैयारी कर रहे हैं।
मोहन सिंह बिष्ट चूकि सत्ताधारी पार्टी के प्रत्याशी हैं तो सवाल उनसे ज्यादा पूछे जाएगे। इसी क्रम में इस स्तंभ में उनके सामने मुंह बाए खड़े सवाल हम शुरू कर रहे हैं।

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पहला सवाल यह है कि वे पार्टी में चंद दिन पहले ही आए तो पार्टी से उनके निष्कासन के समय भी जुड़े रहे नेताओं से आने वाले दिनों में सामंजस्य कैसे बिठा पाएंगे। पार्टी के निर्वतमान विधायक और नैनीताल जिले में 2017 विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी जीत दर्ज करने वाले नवीन दुम्का से उनका 36 का आंकड़ा था, अब नवीन दुम्का उनके प्रचार में एक दो मौकों पर ही दिखते हैं। मोहन का मुकाबला हरीश रावत से है तो यहां विकास को मुद्दा बना दिया गया है। भावनात्मक मुद्दों के लिए कम से कम लालकुआं में कोई स्थान नहीं बचा है। ऐसे में विकास के नाम पर सत्ताधारी पार्टी होने के बावजूद मोहन सिंह के पास सिवाए आश्वासनों के कुछ नहीं है।

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हालांकि मोहन सिंह को जीत और हार दोनों ही स्थितियों में फायदा मिलेगा। जीतें तो भाजपा की सरकार बनने पर उन्हें ईनाम स्वरूप मंत्री पद भी मिल सकता है, और हार गए तो पार्टी उन्हें संगठन में ईनाम देगी। लेकिन जैसे—जैसे मतदान की तिथी नजदीक आ रही है मोहन सिंह के सामने मैदान जीतने की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।

और क्या— क्या चुनौतियां है मोहन सिंह बिष्ट के सामने जानने के लिए हमारी ‘लालकुआं…कहिए नेता जी 1’ अगली किश्त की प्रतीक्षा करें।

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