हल्द्वानी… #नैनं_छिन्दन्ति_शस्त्राणि : दादा ने आंखें मूंदी तो चिकित्सालय में पौत्री की गूंजी किलकारी…खबर पढ़कर आप भी कहेंगे… वाह रे भगवान

हल्द्वानी। कहते हैं जीवन और मरण सब ईश्वर के हाथ है,इसमें जीव की एक नहीं चलती। वर्ना जिस इकलौते बेटे के घर में किलकारियां गूंजने का स्वप्न संजोए चंद्रशेखर कर्नाटक (#Chandrshekhar_karnatak)जीवन की गाड़ी को खींच रहे थे उसकी बेटी होने से चार घंटे पहले ही वे अपनी आखें ​हमेशा के लिए न मूंद लेते।

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बात यहां के हैड़ाखान(#Hedakhan) रोड स्थित रौसीला (#Rausila)गांव निवासी चंद्रशेखर कर्नाटक की हो रही है। पत्नी की मृत्यु के बाद एक बेटी और एक बेटे की जिम्मेदारी उन पर आन पड़ी। बच्चे बहुत छोटे थे तो चंद्रशेखर उनके लिए मां और पिता दोनों ही बने। समय गुजरता गया बच्चे जवान हुए तो कर्नाटक ने पहले बेटी की शादी की और उसके बाद बेटे को लेकर रोजी रोटी के जुगाड़ में हल्द्वानी आ गए। यहां एक सिक्योरिटी (#Security)कंपनी ज्वाइन कर ली। बेटे को भी वहीं लगवा दिया।

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गत वर्ष बेटे का भी विवाह कर दिया। यहां किराये के मकान में रहकर किसी तरह गुजर बसर कर रहे थे। कोरोना काल में बेटा बेरोजगार हुआ तब भी लगभग 55 वर्षीय बाप ने हिम्मत नहीं हारी। घर का खर्च चलाने के लिए डबल ड्यूटी से भी मुंह नहीं फेरा। नैनीताल रोड पर एक शिक्षण संस्थान के हॉस्टल में सुरक्षाकर्मी की ड्यूटी करते रहे।

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उधर बहू गर्भवती हुई तो चंद्रशेखर की आखों में नई चमक लौट आई। चिकित्सकों ने 26 नवंबर की डेट दी थी। लेकिन किसी तरह की परेशानी न होने के कारण बहू को घर पर रख की देखरेख कर रहे थे। बेटे की भी नौकरी लग चुकी थी लेकिन पिता की चिंता अलग ही होती है। चंद्रशेखर नए मेहमान के स्वागत के सपने देखते हुए दिन —रात की ड्यूटी बजाने लगे।

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फिर 30 नवंबर की अपशकुनी सुबह हुई। चंद्रशेखर दमुवाढूंगा में रहने वाले अपने एक मित्र के घर साइकिल से गए हुए थे कि बाहर निकलते समय अचानक उनका सिर चकराया और वे जमीन पर गिर गए। सिर जमीन से लगा और वह हुआ जो किसी ने सोचा भी नहीं था। आनन फानन में मित्र के परिजनों ने चंद्रशेखर के बेटे को फोन करके बुलाया और सभी लेाग उन्हें लेकर आवास विकास स्थित एक निजी चिकित्सालय पहुंचे, यहां पूरा एक दिन भर्ती रहने के बाद जब हालत में सुधार नहीं हुआ तो नैनीताल रोड के दूसरे चिकित्सालय में शिफ्ट करवा दिया गया।

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चिकित्सकों ने बताया कि ब्रेन हेमरेज होने के कारण कोमा में चले गए हैं, बचने की संभावना न के बराबर है फिर भी सीसीयू में रखा जाना होगा। उधर पुत्रवधू को भी प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। परिजन उसे लेकर आवास विकास के चिकित्सालय में पहुंचे चिकित्सकों ने उसे भर्ती कर लिया।
एक दिन चंद्रशेखर सीसीयू में रखे गए, लेकिन कल दोपहर उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

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परिजन शव को लेकर रौसीला पहुंचे भी नहीं थे कि शाम लगीाग सात बजे हल्द्वानी से फोन आया कि आपकी बहू ने स्वस्थ पुत्री को जन्म दिया है। पूरी रात परिजन इस असमंजस में रहे कि नवागंतुक के स्वागत में खुशी व्यक्त करें या आखों के सामने रखी चंद्रशेखर की लाश को देखकर आंसू बहाएं।

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आज सुबह जब चंद्रशेखर का रौसीला के शमशान घाट पर अंतिम संस्कार किया जा रहा है शायद उनकी आत्मा पौत्री के रूप में चिकित्सालय में अपनी मां की बगल में लेटी किलकारियां मार रही है। इसी लिए भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है … नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

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