श्रावण मास में व्रत, पूजन का महात्म्य एवं विधि

आचार्य पंकज पैन्यूली

इस वर्ष श्रावण मास का प्रारंभ 16 जुलाई शुक्रवार यानी आज से शुय हो गया है। इस मास में भगवान शिव की आराधना व विधि विधानपूर्वक पूजन-अर्चन तथा शिवलिंग पर जलार्पण का विशेष महात्म्य है।

आचार्य पंकज पैन्यूली

ज्योतिषाचार्य एवं आध्यात्मिक गुरु आचार्य पंकज पैन्यूली के अनुसार यह मास विशेषतौर से शारीरिक शुद्धि,मानसिक पुष्टि और आत्म कल्याण का प्रतीक माना जाता है। यूं तो हिन्दू धर्म की पूजा पद्धति के अनुसार मनाए जाने वाले सभी व्रत,पर्व,त्योहार आदि का एक विशिष्ट आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आधार है । लेकिन श्रावण मास का पर्व,मास पर्यंत तक मनाए जाने वाला एक ऐसा पूजा पर्व है, जिसका आध्यात्मिक औऱ वैज्ञानिक पक्ष बड़ा ही अद्धभुत और सारगर्भित है।

आचार्य पंकज पैन्यूली ने बताया कि जहां श्रावण मास में की जाने वाली भगवान शिव की पूजा- अर्चना भक्तों के मनोरथ को पूर्ण करने के साथ  उनके मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है, वहीं इस मास में उपवास करने से भक्तों की आंतरिक (शारीरिक) शुद्धि भी होती है। वस्तुतः श्रावण मास में की जाने वाली भगवान शिव की पूजा-अर्चना से एक साथ भक्त को दो महान उपलब्धि प्राप्त हो जाती हैं, इस व्रत से शारीरिक विकार तो दूर होते ही हैं साथ ही भक्ति से मानसिक पुष्टि को बल मिलता है। उन्होंने बताया कि श्रावण मास में व्रत, पूजन व शिवभक्ति में लीन रहने वाले व्यक्ति की गरिष्ठ भोजन जैसे-मांस,अंडे,लहसुन,प्याज आदि से भी अपेक्षित दूरी बनी रहती है। इस प्रकार वर्षाकाल में गरिष्ठ भोजन का त्याग और उपवास करने से पूरे वर्ष पर्यंत तक शारीरिक आरोग्यता प्राप्त की जा सकती है।


श्रावण मास में शिव पूजा ही क्यों

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मान्यता अनुसार माता सती ने भगवान शिव को हर जन्म में पाने का प्रण लिया था। एक बार माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से रुष्ठ होकर उन्हीं के घर में स्वयं का शरीर योगाग्नि से जलाकर त्याग दिया था। इसके बाद उन्होंने हिमालय के राजा हिमाचल के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया,माता पार्वती ने सावन के महीने में भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की व शिव को पति रूप में वरण किया,यही कारण है कि भगवान शिव को सावन का महीना विशेष प्रिय है।              

 
यह भी है अहम कारण

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ज्योतिषाचार्य एवं आध्यात्मिक गुरु पंडित पंकज पैन्यूली के अनुसार मान्यता है कि सावन के महीने में ही भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान किया था। जिससे देवताओं का संकट दूर हो गया था, जिससे उन्होंने  आदर और सम्मान व्यक्त करते हुए भगवान शिव का जल अभिषेक किया। इसके पीछे देवताओं का यह भी भाव था कि,हलाहल विष अति घातक और ज्वलनशील होता है, लिहाजा कहीं इसके ताप से भगवान शिव पीड़ा महसूस नहीं करें लिहाजा देवताओं ने भगवान शिव का जल से अभिषेक किया,इस प्रकार अनादि काल से श्रावण के महीने में भगवान शिव की पूजा और अभिषेक की परम्परा अनवरत चली आ रही है।                           
श्रावण माह के सोमवार विशेषफलदायी क्यों

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आचार्य ने बताया कि सात दिनों में यानी कि सोमवार से लेकर रविवार तक सभी दिन किसी न किसी देवता या ग्रह से संबंधित हैं,इसी क्रम में  सोमवार का दिन भगवान  शिव से संबंधित है साथ ही यह मास (श्रावण) भगवान शिव  को विशेष प्रिय है,अतः भगवान शंकर के अति प्रिय महीने में प्रिय दिन सोमवार  का संयोग स्वतः ही विशिष्ट हो जाता है। यही कारण है कि सावन मास के सोमवार को की जाने वाली शिव पूजा व शिवलिंग पर अभिषेक से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

लेखक ज्योतिष एवं आध्यात्मिक गुरु होने के साथ
भारतीय प्राच्य विद्या पुनुरुत्थान संस्थान ढालवाला, ऋषिकेश के संस्थापक हैं।

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