हल्द्वानी न्यूज : एम्स ने आंखों की सर्जरी के लिए आयुष्मान कार्ड को कहा ना, मरीज परेशान कार्ड बनाया ही क्यों गया

हल्द्वानी। सरकारी चिकित्सालयों में ही सरकारी योजनाएं नहीं चल पा रही हैं। ऐसा ही एक वाकया एम्स ऋषिकेश में में सामने आया है। यहां हल्द्वानी से अपनी आखों का इलाज करने पहुंचे एक व्यक्ति को चिकित्सक ने पचास हजार रूपये के खर्च का ब्योरा बता दिया। चिकित्सक ने साफ कर दिया कि आयुष्मान कार्ड से आखों की बीमारी का इलाज नहीं होता। जबकि एसटीएच हल्द्वानी में आयुष्मान कार्ड पर इस तरह के आपरेशन किए जा रहे हैं।


यह सब हुआ हल्द्वानी के सुभाष नगर निवासी धीरेंद्र कुमार पाठक के साथ। वे शुगर से पीड़ित हैं और उनका सप्ताह में दो बार डायलिसिस भी होता है। इकलौता बेटा हैदराबाद में काम करता है और इन दिनों वर्क फ्रार्म होम सिचुएशन के कारण घर पर ही है। पाठक की आखों की रोशनी भी धीरे धीरे कम होने लगी है। स्थानीय चिकित्सकों ने उन्हें सर्जरी की सलाह दी। इस पर उन्होंने सोमवार को एम्स ऋषिकेश में टेली मेडिसन हेल्पलाइन पर बात करके सारी व्यवस्थाएं समझीं और एम्स की हेल्प लाइन डेस्क के निर्देश पर ही बेटा उन्हें लेकर ऋषिकेश को रवाना हुआ।

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सही समय पर पिता—पुत्र एम्स पहुंच भी गए लेकिन पता चला कि उसी दिन प्रदेश की राज्यपाल भी एम्स में पहुंची हैं। उन्होंने बताया कि जिस चिकित्सक से उनकी की अप्वाइटमेंट तय थी वह उस वक्त खाली थे लेकिन राज्यपाल के नेत्र रोग विभाग में ही होने के कारण चिकित्सक मरीज को देख नहीं रहे थे। अब उनके सामने समस्या थी कि वे आगे क्या करें। वापस लौटें तो सारी मेहनत बेकार।
काफी हाय हुज्जत के बाद चिकित्सक ने उन्हें देखने के लिए अंदर बुलाया।

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कुछ जांच पड़ताल के बाद चिकित्सक ने उन्हें बताया कि उनकी आखों की रेटिना को शुगर की वजह से नुकसान हो रहा है। जो सर्जरी से ठीक हो सकता है। डाक्टर ने रेटिना की सर्जरी के लगभग 35 हजार रूपये और कैट्रैक्ट लैंस आपरेशन के 15 हजार रूपये का खर्च बताया और इसकी भी कोई संभावना नहीं कि आखें पूरी तरह से ही ठीक हो जाए। पाठक का बेटा साथ था, उसका कहना है कि जब चिकित्सक ने उन्हें खर्चे की बात बताई तो वह भ्रम में पड़ गया कि एम्स नाम का यह कोई निजी चिकित्सालय तो नहीं है।
खैर पाठक ने चिकित्सक को बताया कि उनके पास आयुष्मान कार्ड है तो धन की कोई दिक्कत नहीं होगी इस पर चिकित्सक ने बताया एम्स के नेत्र रेाग विभाग में आयुष्मान कार्ड स्वीकार ही नहीं किया जाता।

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इसके बाद पाठक पिता पुत्र वापस लौट आए हैं । उनका कहना है कि आयुष्मान कार्ड में पांच लाख तक का खर्च वाली तमाम बीमारियों के कवर्ड होने की बात बताई गई थी लेकिन अब अधिकतम 50 हजार रूपये के लिए भी मरीज को जेब ही पैसे देने पड़ रहे हैं। तो आयुष्मान कार्ड की उपयोगिता क्या है।

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उन्होंने इस मामले में कुछ जानकारों से भी चर्चा की, उनका भी यही कहना है कि कम से कम उत्तराखंड के मरीज के लिए एम्स में तो आयुष्मान कार्ड पर इलाज मुफ्त ही होना चाहिए। बाहरी राज्यों में आयुष्मान कार्ड न चलने की शिकायतें तो मिली हैं लेकिन एम्स जैसे मेडिकल इंस्टीट्यूट में यह शिकायत पहली बार मिली है। इधर एसटीएच समेत अन्य तमाम सरकारी चिकित्सालयों में इस तरह के इलाज मु्फ्त किए जा रहे हैं। सर्जरी की आवश्यकता पड़े तो आयुष्मान कार्ड सब जगह काम आता है। लेकिन एम्स में हुए इस घटनाक्रम ने तो आयुष्मान कार्ड की उपयोगिता पर ही सवालिया निशान लगा दिए हैं।

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